मर्यादा पुरुषोत्तमु रामचन्द्रु
रूपान सोमु तो गुणान इन्द्रु
विष्णूले वीर्य वरुणाले गांभीर्य
पर्वतरायु हिमवानाले धैर्य ।
क्षमेन्तु तो अवनीचे समानु
त्यागा खातीर तो वैश्रवणालोय आनु
अज्नीलो क्रोधु बृहस्पतीली मती
सूर्य किरणा वरी व्याप्त ती कीर्ती ।
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